जिन लोगों के घरों में गाय पाली जाती है वहॉं बीमारियां भी कम होती हैं जबकि दूसरी ओर जिन घरों में श्वान पाले जा रहे हैं वे किसी न किसी रूप में बीमारियों के घर हुआ करते हैं। मनुष्य की जो भी बीमारियां हैं उनमें गौमूत्र, गौघृत, गौ दुग्ध का अचूक प्रभाव सामने आया है। वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि गाय का स्पर्श मात्र कई बीमारियों के दूषित प्रभाव को निष्फल कर देता है। गाय का दूध पीलापन लिये हुए होता है और इसमें स्वर्ण की मात्रा होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गाय की रीढ़ पर सूर्य की किरणें पड़ती रहने से उसके दूध में स्वर्ण का अंश अपने आप आने लगता है। यह दूध अमृत से भी बढ़कर है। गौवंश की इस सारी महिमा के बावजूद हमारा यह दुर्भाग्य ही है कि शाश्वत सत्य को स्वीकारने की बजाय हम पाश्चात्य श्वान संस्कृति को जीवन में अपना रहे हैं और अब तो हमारा व्यवहार तक श्वानों की तरह होता जा रहा है।

गो प्रेमी संघ भारत की संस्कृति मूलत: गौ संस्कृति है। भारतीय समाज ने गाय को माँ की संज्ञा से पुकारा है। 'तिलम न धान्यम पशुवः न गावः' तिल धान्य नहीं,गाय पशु नहीं है। गाय के प्रादुर्भाव की कथा समुद्र मंथन से प्रारम्भ होती है। समुद्र मंथन से कामधेनु रुपी पांच गौ माताएं प्रकट हुई - नंदा,सुभद्रा,सुरभि,सुशीला,बहुला इन पांच गौमाताओं की सेवा हेतु पंच ऋषियों ने इन्हें प्राप्त किया- जमदग्नि,भारद्वाज,वशिष्ट,असित,गौतम।
गो प्रेमी संघ
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गाय बचेगी, देश बचेगा !
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