गाय पृथ्वी पर समस्त देवताओं की साक्षात प्रतिनिधि है
जिसकी देह के अंग-प्रत्यंग में सभी देवी-देवता स्थित हैं, वह गो सर्वदेवमय है।जब भी कोई मनुष्य गऊ माता की धूली को अपने माथे पर लगाता है, उसे तत्काल किसी तीर्थ स्थल के जल में स्नान
करने जितना पुण्य प्राप्त होता है और सफलता उसके कदम चूमती है।
जहां पर गाय रहती है, वह स्थान पवित्र होकर तीर्थ स्थल के समान हो जाता है।
गाय ही भूत और भविष्य है। वह सदा रहने वाली पुष्टि का कारण व लक्ष्मी की जड़ है।
गोमाता को कुछ दिया जाता है तो उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता।
गाय के सींगों के अग्र भाग में देवराज इंद्र, हृदय में कार्तिकेय, सिर में ब्रह्मा, ललाट में शंकर, दोनों नेत्रों में चंद्रमा व सूर्य,
जीभ में सरस्वती, दांतों में मरुदगण, स्तनों में चारों पवित्र समुद्र, गोमूत्र में गंगा, गोबर में लक्ष्मी और खुरों के अग्रभाग में अप्सराएं निवास करती हैं।
गाय के सींगों में चर व अचर सभी तीर्थ विद्यमान हैं।
जो गोमाता के ऊपर कभी क्रोध नहीं करता, उन्हें प्रताड़ित नहीं करता, वह महान ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।
इसलिए गाय को साक्षात देवस्वरूप मानकर उसकी देखभाल करना और गोरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना मानव मात्र का कर्तव्य ही नहीं, धर्म भी है।
No comments:
Post a Comment