(लेखक श्री सहदेव भाटिया जी )
भारत प्राचीन समय से बहुत अधिक संख्या में गोपालन कर रहा है. त्रेता युग में भगवान श्री राम के जन्म के समय में बहुत ही उत्साह के साथ में दशरथ राजा ने ब्राहमणों को बहुत सुंदर पकवानों के साथ में भोजन करवाकर सोने के सींगों से मढ़ी हुए तथा चांदी से मढे हुए खूर तथा दूध दोहने के पात्रों के साथ में बछड़ों के साथ में अपार गोवंश यानी लाखों में दान में दिया था.
भगवान श्री राम के समय के अपार ऐ’वर्य का वर्णन नारद संहिता, वाल्मिकी रामायण तथा तुलसीदासजी के राम चरित्र मानस में मिलता है.
भगवान श्री राम के जन्म के समय में अयोध्या में प्रजा के द्वारा बहुत ही जबरदस्त महोत्सव कई दिनों तक मनाया गया था.
भरत के जन्म के समय में भी दशरथजी के द्वारा ब्राहमणों को कामधेनु के समान सुंदर गायें दान में दी थी. लख्मण एवं ’ात्रुघ्न के जन्म के समय में कपिला, नंदनी, बहुला, सुरभि, ’यामा के समान गायें दान में दी थी.
भगवान श्री राम के विवाह के समय में महाराजा श्री जनक के अनुरोध पर चार लाख सुंदर, युवा, अधिक दूध देने वाली गायें दशरथ जी के द्वारा ब्राहमणों को दान में दी गयी थी.
नारद संहिता के अनुसार भगवान श्री राम ने दस हजार करोड़ गायें कामधेनु, नंदनी, कपिला, सुरभि, बहुला, ’यामा आदि सुंदर, युवा, अधिक दूध देने वाली बछड़ों सहित बहुमूल्य दिव्य वस्त्रों एवं अलंकारों से सजाकर दूध दोहने के पात्रों के साथ में ब्राहमणों को दान में दी थी. भगवान श्री राम के ऐ’वर्य का वर्णन हमें देखने मिलता है.
वेदों के अनुसार दान से आयु बढ़ती है तथा भगवान श्री राम ने मानव अवतार धारण कर लोगों को दान करने की प्रेरणा दी.
भगवान श्री राम के द्वारा ५०,००० गोवंश विरोधी राक्षसों का वध किया गया था.
सीता जी सुंदर सुंदर पकवान एवं भोजन तैयार करवाकर विधिपूर्वक साक्षात कामधेनु की पूजा स्वयं नित्य करती थी.
भगवान श्रीराम के समय में गायों का पालन बहुत अच्छी तरह से किया जाता था.
श्रीमद भागवत के अनुसार द्वापर युग के अंत में भगवान श्री कृ”ण ने मथुरा में वसुदेव जी के यहां पर जन्म लिया था. वसुदेव जी ने एक लाख गायों के दान का संकल्प भगवान के जन्म के समय जेल में लिया था जिसे वसुदेवजी ने कैद से मुक्त होने के बाद में पूरा किया था.
गर्ग संहिता के अनुसार भगवान कन्हैया के समय में ७२ करोड़ गायें व्रज में थी. नंदराय के द्वारा भगवान के जन्म के समय में २० लाख गोवं’ा ब्राहमणों को दान करने के बारे में गर्ग संहिता में वर्णन है. य’ाोदा जी के द्वारा ९ लाख गायें ब्राहमणों को दान में दी गयी थी.
श्री राधाजी के जन्म के समय में वृ”ाभानुवर के द्वारा २ लाख गायों का दान किया था.
गर्ग संहिता के गोलोक खंड के चोथे अध्याय के अनुसार ९ नंद, ९ उपनंद, ८ वृषभानु, असंख्य गोप व्रज में मोजूद थे.
१ करोड़ गोवंश के कारण नन्दराज, ५० लाख गोवं’ा होने पर वृ”ाभानुवर, १० लाख गोवं’ा रखने पर वृ”ाभानु, ९ लाख गोवंश रखने पर नन्द, ५ लाख गोवंश रखने पर उपनन्द, १ लाख गोवंश रखने पर गोप जैसी उपाधियां गोधन के कारण ही दी जाती रही है.
No comments:
Post a Comment