गो प्रेमी संघ

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गाय बचेगी, देश बचेगा !

Sunday, July 28, 2013

गोपाल का गायों से प्रेम तो निराला ही था




गोपाल का गायों से प्रेम तो निराला ही था। गायों का गोकुल में जन्म भी उनके अनेक जन्मों के पुण्य का परिणाम था। वे कितनी भाग्यशालिनी थीं कि उन्हें श्रीकृष्ण का पुचकार-भरा प्रेम मिलता था। गोपाल बार-बार अपने पीताम्बर से गायों के शरीर की धूल साफ करते तथा तथा उन्हें अपने कोमल हाथों से सहलाते थे। गायों को भी श्रीकृष्ण को देखे बिना चैन नहीं मिलता था। वे बार-बार श्रीकृष्ण के दर्शन की लालसा से नन्दभवन के मुख्य दरवाजे की तरफ टकटकी लगाये देखा करतीं, ताकि जैसे ही श्रीकृष्ण निकलें वे अपनी आँखों को उनके दर्शन से तृप्त कर सकें.....
जब भी मोहन बाहर निकलते गायें उनके शरीर को अपनी जीभ से चाट-चाटकर अपना सम्पूर्ण वात्सल्य उनके ऊपर उड़ेलती रहती थीं। गायें भी यशोदा मैया से कम भाग्यशालिनी नहीं थीं, क्योंकि उन्हें कन्हैया को अपना दूध पिलाने का अवसर प्राप्त हो रहा था और बदले में कन्हैया का प्रेम मिल रहा था। गोकुल या व्रज में रज-कण भी बन जाना बहुत बड़े सौभाग्य की बात है। रसखान ने भगवान् से याचना करते हुए कहा है-
जो पशु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मझारन।
पाहन हौं तो वही गिरिको जो धर्यो कर छत्र पुरन्दर धारन।।

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