देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए
वरदानरूप हैं । दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और
रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है । घी ओज-तेज प्रदान करता है । गोमूत्र कफ व
वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के
रोग, जोड़ों के दर्द, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है । गाय
के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है । ये हमारे पाप-ताप भी दूर करते हैं । देशी
गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापों का नाश होता है ।
गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं ।
‘स्कंद पुराण’ में गौ- माता में सर्व तीर्थों और सभी देवताओं का निवास
बताया गया है । स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए
क्योंकि गौ-सेवक को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर
बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं । विशेष : ये सभी लाभ
देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन से नहीं
गो प्रेमी संघ भारत की संस्कृति मूलत: गौ संस्कृति है। भारतीय समाज ने गाय को माँ की संज्ञा से पुकारा है। 'तिलम न धान्यम पशुवः न गावः' तिल धान्य नहीं,गाय पशु नहीं है। गाय के प्रादुर्भाव की कथा समुद्र मंथन से प्रारम्भ होती है। समुद्र मंथन से कामधेनु रुपी पांच गौ माताएं प्रकट हुई - नंदा,सुभद्रा,सुरभि,सुशीला,बहुला इन पांच गौमाताओं की सेवा हेतु पंच ऋषियों ने इन्हें प्राप्त किया- जमदग्नि,भारद्वाज,वशिष्ट,असित,गौतम।
गो प्रेमी संघ
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गाय बचेगी, देश बचेगा !
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