गीर गाय
(लेखक गोवंश सेवक श्री सहदेव भाटिया जी ,
विद्युत अभियंता, अखिल विश्व कामधेनु परिवार 21 सी जयराज कोम्प्लेक्स, सोनी नी चाल, ओढव मार्ग
अहमदाबाद गुजरात 382415
दूरभाष 096624-07242,
087330-08557 )
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विश्व का प्राण आधार
गीर गोवंश ही विष्व का प्राण आधार है. त्रेता युग में भगवान श्री राम के समय में नारद संहिता के अनुसार अपार ऐष्वर्य गीर गायें अपने अधिक दूध देने के कारण मौजूद था. भगवान श्री राम ने दस हजार करोड़ गीर गायें बहुत अधिक दूध देने वाली सुंदर वस्त्रों के साथ अलंकृत, दूध दोहने के पात्रों के साथ में ब्राहमणों को दान में दी थी. भगवान श्री राम ने अनेको महायज्ञ करवाये थे.
महाभारत काल में अष्वनी कुमारों के पुत्र सहदेव के पास में नक्षत्र तथा जड़ीबूटियों का बहुत अच्छा ज्ञान था. सहदेव संहिता में सहदेव के अनुभव का वर्णन किया गया है. सहदेव के समय में गीर गायें बहुत ही अधिक दूध देती थी. सहदेव के द्वारा गोवंष की विषेश देखभाल करने के कारण गीर गायों के बारह सौ बावन प्रकार थे. युधिश्ठिर के पास में आठ लाख गीर गायों के दस हजार वर्ग थे. दो लाख तथा एक लाख गीर गायों के असंख्य वर्ग थे.
नग्नजीत के पास में गीर गोवंष के विकास करने के कारण ळी अपार ऐष्वर्य था. अपनी पुत्री के विवाह में दहेज में भगवान श्री कृश्ण को नौ अरब सेवक सुंदर आभूशणों तथा वस्त्रों के साथ में दिये थे. नग्नजीत ने गीर गायों के विकास के लिए कौषलदेष में बहुत ही अदभुत कार्य किये थे. अपनी पुत्री सत्या के विवाह करवाने के लिए स्वयंवर में सात गीर सांढों को एक साथ में नाथने के लिए षर्त रखी थी.
द्वापर में भगवान श्री कृश्ण के जन्म के समय में व्रज में गीर गायों का विकास गर्ग संहिता के अनुसार बहुत ही अच्दा हुआ था. भगवान ने स्वयं 11 साल 52 दिनों तक व्रज में खुले चरणों से गोचारण कर गीर गायों की सेवा की थी. नंदरायजी के पास में एक करोड़ गीर गायें थी. 20 लाख गीर गायें भगवान के जन्म के समय में नंदरायजी ने ब्राहमणों को दान में दी थी. नौ नंद तथा नौ उपनंद थे. प्रत्येक नंद के पास में नौ लाख तथा प्रत्येक उपनंद के पास में पांच लाख गीर गायें थी. राधाजी के पिता वृशभानजी के पास में पचास लाख गीर गायें थी. एक करोड़ गोप व्रज में थे. प्रत्येक गोप के पास में एक लाख गीर गायें थी.
गीर गायें बहुत ही अधिक दूध देने वाली ऐष्वर्य की देने वाली हैं. श्रीमद भागवत के अनुसार इक्ष्वाकु के पुत्र नृग के पास में अपार ऐष्वर्य था. नृग के द्वारा गीर गायों का विकास सबसे अधिक किया गया था. ब्राहमणों को नृग ने सबसे अधिक गीर गायें दी थी.
गीर गोवंष का विकास अम्बरीश के समय में चरम सीमा पर था. गीर गायें बहुत ही अधिक दूध देती थी. अम्बरीश के द्वारा मधुवन में एक साल तक एकादषी व्रत करने के बाद में सोने के सींगों से मढी हुई तथा खूरों को ताबें से मढकर तथा दूध दोहने के पात्रों के साथ में 60 करोड़ गीर गायें भोजन करने के बाद में ब्राहमणों को दान में दी गयी थी. श्रीमद भागवत के अनुसार अम्बरीश के द्वारा सात द्वीपों के राज रहने के बाद अपने अपार ऐष्वर्य त्याग करने के बाद में भगवान क्श्ण की भक्ति में सदैव लीन रहते थे. अम्बरीश के रक्षण करने के लिए भगवान ने अपने सुदर्षन चक्र को नियुक्त किया था. अम्बरीश के द्वारा कई अष्वमेघ यज्ञ किये थे. प्राचीनकाल में 16 करोड़ की भारत की जनसंख्या के समय 96 करोड़ गोवंष भारत में मौजूद था. गीर गोवंष का विकास उस समय चरम सीमा पर था. कलियुग में भगवान महावीर के काल में गीर गायों का विकास बहुत ही अच्छा हुआ था. भगवान महावीर के समय में गीर गायें बहुत ही अधिक दूध देती थी इसलिए अपार ऐष्वर्य मौजूद था.
भारत के उत्थान का समय गुप्तकाल माना जाता है. महशर््िा सुश्रुत एवं महर्शि चरक के द्वारा गुप्तकाल में गीर के विकास करने के लिए अदभुत कार्य किया गया था. पुराने घी का उपयोग औशधि के लिए किया गया था. पंचगव्य तथा महापंचगव्य का विषेश महत्व था. मंदिरों के कलषों में घी भरकर सुरक्षित रखा जाता था. गोरोचन का उपयोग चिकित्सा के लिए किया जाता था. हवन नियमित हर निवास में किया जाता था. अग्निहोत्र के कारण अग्निहोत्र कृशि तथा अग्निहोत्र चिकित्सा का कार्य विषेश रुप से किया जाता था. गीर गोवंष के विकास करने के कारण गुप्त काल में 250 सालों तक सोने के सिक्के भारत में चल रहे थे. हर व्यक्ति बहुत विषाल संख्या में गोवंष की सेवा कर सुखी और सम्पन्न था.
2 लाख 31 हजार सांढ
सिकंदर भारत से लौटते समय अपने साथ में 2 लाख 31 हजार बढि़या सांढ ग्रीस में गोवंष के विकास करने के लिए ले गया था.
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