गो प्रेमी संघ

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Monday, December 9, 2013

अंकोल

अंकोल
                                                ( लेखक कामधेनु सेवक श्री सहदेव भाटिया )
भारत में त्रेता के समय सूर्यवंष में भगवान श्री राम के समय में नारद संहिता के अनुसार गोवंष का विकास चरम सीमा पर था. भगवान श्री राम ने अनेकों विषाल यज्ञ करवाये थे. भगवान श्री राम के पास में अपार ऐष्वर्य लंबे सींगों वाले गोधन के कारण था.
दस हजार करोड़ लंबे सींगो वाले गोवंष का दान भगवान श्री राम ने ब्राहमणों को किया था. अंकोल के समान लंबे सींगो वाले गोवंष के कारण रामराज्य प्रसिद्ध है.
द्वापर में भगवान श्री कृश्ण के समय में लंबे सींगों वाले गोवंष के अदभुत विकास के बारे में व्रज में गर्ग संहिता के अनुसार वर्णन मिलता है. नन्दराज जिसे नन्दरायजी भी कहा गया है एक करोड़ गोवंष रखने के कारण पदवी दी गयी थी. 1 करोड़ गोवंष में से 20 लाख गोवंष भगवान के जन्म के समय में ब्राहमणों को दान में दिया गया था. नंदरायजी के छोटे भाई 9 नंद प्रत्येक के पास में 9 लाख लंबे सींगो वाले गोवंष, 9 उपनंद प्रत्येक के पास में 5 लाख गोवंष थे. प्रत्येक गोप के पास में एक लाख गोवंष था. एक करोड़ गोप व्रज में थे. दस हजार गोवंष के समूह को गोकुल कहा जाता है. श्रीमद भागवत में गोपाश्टमी के दिन से भगवान श्रीकृश्ण के गोचारण का वर्णन मिलता है. भगवान श्री कृश्ण के द्वारा मात्र 11 साल 52 दिनों तक व्रज में रहकर नंदरायजी के लंबे सींगों वाले गोवंष का चमत्कारिक विकास कर लोगों को प्रेरित किया गया था. 125 सालों के अपने मानव जीवन में भगवान श्री कृश्ण ने लंबे सींगों वाले गोवंष के विकास करने के लिए द्वारका में विषेश व्यवस्थाएं की थी. द्वारका का ऐष्वर्य श्रीमद भागवत में वर्णन किया गया है. प्रतिदिन 4 लाख गायों का दान भगवान स्वयं पूजन के बाद में ब्राहमणों को करते थे. श्रीमद भागवत के अनुसार द्वापर में कौषल के नग्नजीत के द्वारा लंबे सींगों के गोवंष का विकास चरम सीमा तक किया था. अपार ऐष्वर्य के कारण नग्नजीत को विष्व में जाना जाता था. अपनी पुत्री के विवाह में दहेज में नग्नजीत ने 9 अरब सेवक सुंदर वस्त्रों के साथ में दिये थे. सात सांढों को एक साथ नाथने की षर्त अपनी पुत्री सत्या के स्वयंवर में नग्नजीत के द्वारा रखी गयी थी. द्वापर में अष्वनी कुमार के पुत्र सहदेव के द्वारा अंकोल के समान लंबे सींगों वाले गोवंष का विकास सबसे अच्छा किया गया था. सूर्य के पुत्र अष्वनी कुमारों के द्वारा सहदेव को जड़ीबटियों का ज्ञान दिया गया था. सहदेव के पास में नक्षत्रों के बारे में बहुत ही अदभुत ज्ञान था. राजा विराट के पास में लंबे सींगों वाले एक रंग के एक लाख गोवंष मोजूद थे. राजा विराट का गोधन लंबे सींगों के कारण बहुत ही प्रसिद्ध था. महाभारत के विराट पर्व में सहदेव के द्वारा विराट के दरबार में गुप्त एक साल के समय में युघिश्ठिर के गोवंष के बारे में वर्णन करते हुए कहा गया था कि 8 लाख गोवंष के दस हजार वर्ग, दो लाख तथा 1 लाख के असंख्य वर्ग थे. मैं ऐसे उत्तम लक्षण के बैलों को जानता हूं जिनका मूत्र मात्र सूंघ लेने पर बांझ स्त्री गर्भ धारण कर लेती है. 40 कोस में गोवंष की वृद्धि की गणना तथा उनका उपचार मैं कर लेता हूं. सहदेव के द्वारा सहदेव संहिता में अपने अनुभवों के बारे में विस्तार से जानकारियां दी गयी हें.
श्रीमद भागवत के अनुसार इक्ष्वाकु के पुत्र नृग के पास में लंबे सींगों के गोधन के विकास करने के कारण ही अपार ऐष्वर्य था. लंबे सींगों वाले गोधन का विकास चरम सीमा पर था. नृग के द्वारा ब्राहमणों को अपार गोधन दान में दिया गया था. श्रीमद भागवत के अनुसार अम्बरीश के पास में अपार ऐष्वर्य था. सातों द्वीपों का राज अम्बरीश के पास में था. अम्बरीश के द्वारा कई अष्वमेघ यज्ञ किये गये थे.
लंबे सींगों वाले गोवंष के चरम सीमा तक विकास करने के कारण पूरे विष्व में अम्बरीश का नाम प्रसिद्ध था.
अम्बरीश भगवान श्रीकृश्ण का परम भक्त था.
अम्बरीश ने मधुवन में एक साल तक व्रत कर तीन दिनों तक उपवास कर ब्राहमणों को भोजन करवाकर सींगों को सोने से मढवा कर तथा खूरों को तांबे से मढवा कर तथा दूध दोहने के पात्रों के साथ में सुंदर सोने के आभूशणों से अंलकृत तथा सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित 60 करोड़ गोवंष का दान किया था. ओखलामा विश्वविद्यालय अमेरिका के द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार अंकोल वाटसी नस्ल का विकास आफ्रीका में 2000 वर्षेां पूर्व पाकिस्तान तथा भारत से प्राप्त भारतीय गोवंश के द्वारा इजीप्सीयन लोंगहोर्न के साथ क्रोस करवा कर किया गया है. आफ्रीका में पाये जाने वाले सांगा भारतीय गोवंष का आधार पाकिस्तान तथा भारत से लाये गये गोवंष हैं. सांगा नस्ल में जेबू के कुछ अलग गुण पाये जाते थे. विकसित कंधे तथा सींग उपर की ओर मुडे हुए रहते थे. आफ्रीका की जातियों ने बाद में अपने अनुसार सांगा नस्लों को विकसित किये थे जिसके कारण आकार तथा सींगों में परिवर्तन देखने मिले थे. आफ्र्रीका में लम्बे सींगों वाली नस्लें बाहेमा, कीगेजी, वाटसी हैं. आफ्रीका में पायी जाने वाली तीन प्रजातियों में बाषी, टूटसी और बाहेमा हैं.
टूटसी और बाहेमा हैं.
बाहेमा के टूटसी के सींग सबसे लम्बे होते हैं.
अंकोल का उपयोग खेती करने के लिये होता है. अंकोल नस्ल पूर्वी अफ्रीका के मोबूतू झील से तांगानयीका झील के बीच में मौजूद है.
13 वी से 15 वी सदी के बीच में हेमिटिक जाति ने उत्तरी यूगांडा में अंकोल नस्ल को लाया था. अंकोल को वहां के खतरनाक कीटों ने दक्षिण की ओर जाने के लिये मजबूर कर दिया था. हीमा या बहेमा जातियों ने यूगांडा, केनिया, तंजानिया के विकटोरिया झील के किनारे पर बसना प्रारम्भ किया था. वातुसी या टूटसी जाति रवांडा तथा बूरुंडी में ही रहने लगी थी. वहां से झेर जिले में रहने चली गयी थी. इन सभी जातियों ने सींग के आकार का चुनाव कर पाला था. पूरी तरह से सही अंकोल नस्ल मध्यम लम्बे सिर, छोटी गर्दन, पतली छाती वाली होती है. आफ्रीका में अंकोल मंहगे दामों में खरीद कर पाली जाती है. अंकोल को अपने साथ उत्सव मनाने के लिये पालते हैं. अंकोल उत्पादकता के लिये नहीं पाली जाती है. अंकोल वाटसी नस्ल का इतिहास 6000 वर्षों से पहले का है. अंकोल वाटसी के बारे में कहा गया है कि 4000 वर्षों पूर्व नील घाटी में लोंगहोर्न हम्पलेस पालतु जानवर मौजूद थे. इजीप्ट के पिरामिडों में अंकोल वाटसी नस्ल का उल्लेख किया गया है. 2000 वर्षों बाद नील घाटी से इथोपिया तथा सोमालिया अंकोल वाटसी नस्ल पहुंच गयी. इथोपिया से सूडान, युगांडा, केनिया, पूर्व आफ्रीका में अंकोल वाटसी नस्ल पहुुच गयी. जर्मनी, स्वीडन, इंगलेंड के गेम पार्क एवं झू ने भी आफ्रीका से अंकोल वाटसी को आयात किया. 1920 से 1930 के बीच में अमेरिका में भी अंकोल वाटसी को यूरोपियन झू से आयात किया गया. 1978 से पूर्व ही उत्तरी अमेरिका में अंकोल वाटसी के प्रति जागृति आ गयी थी इसलिये उत्तरी अमेरिका में जनवरी 1983 में अंकोल वाटसी नस्ल के प्रति संपूर्ण जागृति उत्पन्न करने के लिये अंकोल वाटसी इंटरनेशनल रजिस्ट्री का गठन किया गया था. 5 माह के भीतर ही 74 सदस्यों ने अपनी अलग अलग आवश्यकताओं के लिये अंकोल वाटसी के बारे में संपूर्ण जानकारियों को एकत्रित करना प्रारम्भ किया था. अमेरिका में अंकोल नस्ल का उपयोग अंकोल वाटसी नस्ल के संपूर्ण विकास करने के लिये किया गया. अंकोल नस्ल आफ्रीका में पायी जाती है. अंकोल नस्ल का रंग परिवर्तित है. अंकोल को युगांडा में नकोल जाति पालती है. रवांडा में वाटसी की इंकुकु आम रुप से पायी जाती है. टुटसी के राजा के पास इनीएमबो पायी जाती है. आफ्रीका में अंकोल वाटसी का उपयोग मांस के लिये कभी नहीं किया गया क्योंकि आफ्रीका की आदिवासी जातियां दूध तथा दूध से बने पदार्थों के लिये ही पालती थी. आफ्रीका में आदिवासियों में हमेषा मालिक की पहचान उसके द्वारा पाले जाने वाले गोधन से होती थी. आफ्रीका में गोधन को सामाजिक सम्मान के रुप में ही पालने की परम्परा रही है. अंकोल गाय को दिन भर चरने के लिये छोड दिया जाता था तथा शाम को चरने के बाद बछडे को भर पेट दूध पिलाने के लिये वापस लाया जाता था. सुबह भी बछडे को भर पेट दूध पिलाने दिया जाता था. अंकोल कम दूध देती थी इसलिये बछडे कम आयु में मृत्यु पाते थे. 10 साल तक सरकार ने अधिक दूध के उत्पादन के लिये प्रयास किये थे. बीमारियों और अकाल के कारण ही सरकार के प्रयासों को कमजोर करते चले गये. अंकोल वाटसी गाय का भार 400 से 600 किलो तक है. बैल का भार 500 से 800 किलोग्राम रहता है. नवजात बच्चे का भार 15 से 30 किलो तक होता है. नवजात का कम भार अंकोल वाटसी बैलों को दूसरी नस्ल सुधारने के लिये उपयोगी बनाता है. अकोल वाटसी एक दिन में 20 से 120 डिग्री फेरेन्हाइट बदलते तापमान वाले मौसम में आसानी से जी लेती है. अमेरिका में नस्ल सुधार के लिये अंकोल वाटसी का उपयोग किया गया.
अमेरिका में अधिक वसा के लिये अंकोल वाटसी का उपयोग किया गया.  विश्व की सबसे अधिक वसा 10 प्रतिशत अंकोल वाटसी के दूध में पायी जाती है. अमेरिका में 5 सालों में 3 बार अध्ययन करने पर पाया गया कि अंकोल वाटसी के मांस में कम वसा तथा कम कोलेस्ट्रोल है इसलिये अंकोल वाटसी के मांस की मांग अमेरिका में बहुत ही अधिक है. अमेरिका अंकोल वाटसी को पूरी तरह से सुरक्षित रखने के लिये बहुत ही अधिक जागरुक है. अमेरिका बहुत अधिक खर्च कर निरन्तर अनुसंधान कर रहा है.
भारत में गोवंष के दूध में अधिक वसा प्राप्त करने के लिये अंकोल वाटसी के माध्यम से नस्ल सुधारने के लिये विष्व हिंदु परिशद के श्री सुनील जी मानसिंगा गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र चितारों की गली व्यास भवन, महाल नागपुर को भी गंभीरता से कार्य प्रारम्भ करना है.
श्री रामचंद्रपुरम मठ हानिया में होषानगर तहसील सिमोगा जिले में कर्नाटक राज्य में 36 वें षंकराचार्य जी को भी विष्व की सबसे महत्वपूर्ण पुरानी भारतीय गोवंष अंकोल प्रजाति की ओर पूरा ध्यान केंद्रित करने की आवष्यकता है. भारत में 7000 साल के बाद में एक बार फिर से अंकोल गोवंष को घर घर में लाने के लिए लहर उत्पन्न करने की आवष्यकता है. उनके द्वारा करोड़ों का खर्च करके भारतीय गोवंष के संवर्धन करने के लिए पहली बार 21 अप्रेल से 29 अप्रेल 2007 तक विष्व गो सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमें 20 लाख लोगों ने बहुत ही उत्साह के साथ में भाग लिया था. 9 घंटों तक चिंतन किया गया था.
अंकोल वाटसी के मोटे तथा मजबूत भारी भरकम सींगों के कारण बहुत ही अधिक गरमी सहन करने की क्षमता बहुत ही अच्छी है क्योंकि सींग में से खून प्रवाहित होकर तेजी के साथ ठंडा हो जाता है. अंकोल वाटसी का रंग लाल रहता है. अंकोल वाटसी नस्ल को आफ्रीका के राजघराने के गोवंश के रुप में जाने जाते हैं. अंकोल वाटसी को भारत में पूरी तरह से विकसित करने के लिये गोषालाओं में योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने की आवष्यकता है. श्री रामचंद्रपुरम मठ हानिया में होषानगर तहसील सिमोगा जिले में कर्नाटक राज्य में 36 वें षंकराचार्य जी को भी विष्व की सबसे महत्वपूर्ण पुरानी भारतीय गोवंष अंकोल प्रजाति की ओर पूरा ध्यान केंद्रित करने की आवष्यकता है. भारत में 7000 साल के बाद में एक बार फिर से अंकोल गोवंष को घर घर में लाने के लिए लहर उत्पन्न करने की आवष्यकता है. उनके द्वारा करोड़ों का खर्च करके भारतीय गोवंष के संवर्धन करने के लिए पहली बार 21 अप्रेल से 29 अप्रेल 2007 तक विष्व गो सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमें 20 लाख लोगों ने बहुत ही उत्साह के साथ में भाग लिया था. 9 घंटों तक चिंतन किया गया था.
अंकोल वाटसी के मोटे तथा मजबूत भारी भरकम सींगों के कारण बहुत ही अधिक गरमी सहन करने की क्षमता बहुत ही अच्छी है क्योंकि सींग में से खून प्रवाहित होकर तेजी के साथ ठंडा हो जाता है. अंकोल वाटसी का रंग लाल रहता है. अंकोल वाटसी नस्ल को आफ्रीका के राजघराने के गोवंश के रुप में जाने जाते हैं. अंकोल वाटसी को भारत में पूरी तरह से विकसित करने के लिये गोषालाओं में योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने की आवष्यकता है.